रामचरित मानस से.....
(श्री हरजीत निषाद जी)
कुछ अन्य नहीं अविरल, निष्काम भक्ति ही मांगे
(रामचरित मानस के उत्तर काण्ड से)
काग्भुसुंडी जी, गुरुण जी को भगवन की सगुण लीला और उनके सर्वव्यापी, अविनाशी स्वरुप का वर्णन करते हुए कहते हैं -
प्राकृत सिसु इव लीला देखि भयउ मोहि मोह
कवन चरित्र करत प्रभु चिदानंद संदोह.
अर्थात साधारण बच्चों जैसी प्रभु की लीला देखकर मुझे मोह (शंका) हुई की सत्-चित-आनंद स्वरुप प्रभु यह कौन चरित्र (लीला) कर रहे हैं. हे पक्षिराज गरुण! मेरे मन में इतनी शंका आते ही श्री रघुनाथ जी
की माया मुझ पर छा गई परन्तु वह माया न मुझे दुःख देने वाली हुई और न अन्य जीवों की भांति संसार में डालने वाली हुई.
एतना मन आनत खगराया. रघुपति प्रेरित व्यापी माया.
सो माया न दुखद मोहि काहीं. आन जीव इव संसृत नाहीं.
सीता पति भगवन श्रीराम अखंड ज्ञान स्वरुप हैं शेष जड़-चेतन सभी माया के वश में है.
ग्यान अखंड एक सीतावर. माया बस्य जीव सचराचर.
यदि सब में ज्ञान अर्थात परमात्मा के तत्वरूप का बोध सदैव एकरस रहे तो इश्वर और जीव का भेद ही समाप्त हो जाय. अभिमान ग्रसित जीव माया के वश है और तीनों गुणों (सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण) वाली माया
इश्वर के वश में है.
जौं सब के रह ग्यान एकरस. इस्वर जीवहिं भेद कहहु कस.
माया बस्य जीव अभिमानी. इस बसे माया गुण खानी.
जीव परतंत्र है, भगवन सवतंत्र हैं. जीव अनेक हैं, भगवन एक हैं. यद्यपि माया का किया हुआ यह भेद असत है और भगवन के भजन (प्रभु को जानकर इसका सुमिरन) किये बिना करोड़ों उपाय करने पर भी यह भेद जाना ही
नहीं जा सकता. प्रभु श्री राम तत्वज्ञान से कागभुसुंडी जी को कृतार्थ कर रहे हैं-
ग्यान बिबेक बिरती बिग्याना. मुनि दुर्लभ गुण जे जग नाना.
आजू देऊँ सब संसय नाहीं. मागु जो तोही भाव मन माहीं.
सब सुख मांगे की अपेक्षा भक्त को भगवन से हमेशा भक्ति माँगना चाहिए क्यूंकि भक्ति के बिना सभी गुण, सब सुख ऐसे ही हैं जैसे नमक के बिना विविध प्रकार के सुस्वादु व्यंजन.
भगति हीन गुण सब सुख ऐसे. लवन बिना बहु बिंजन जैसे.
भजन बिना सुख कवने काजा. अस बिचारी बोलेऊँ खगराजा.
काग भुसुण्डी जी ने प्रभु की अविरल (प्रगड़) और विशुद्ध, अनन्य, निष्काम भक्ति मांगी. हर भक्त की यही मांग होनी चाहिए.
अविरल भगति बिसुद्द तव श्रुति पुराण जो गाव.
जेहि खोजत जोगीस मुनि प्रभु प्रसाद कोऊ पाँव.