साईंबाबा (जन्म: अज्ञात, मृत्यु: १५ अक्टूबर १९१८) जिन्हें शिरडी साईंबाबा भी कहा जाता है एक भारतीय गुरु, योगी और फकीर थे जिन्हें उनके भक्तों द्वारा संत कहा जाता है। उनके सत्य नाम, जन्म, पता और माता पिता के सन्दर्भ में कोई सूचना उपलब्द्ध नहीं है। जब उन्हें उनके पूर्व जीवन के सन्दर्भ में पुछा जाता था तो टाल-मटोल उत्तर दिया करते थे। साईं शब्द उन्हें भारत के पश्चिमी भाग में स्थित प्रांत महाराष्ट्र के शिरडी नामक कस्बे में पहुंचने के बाद मिला।
भक्तों और ऐतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि जन्म स्थान और तिथि के सन्दर्भ में कोई भी विश्वनीय स्रोत उपलब्द्ध नहीं है। यह ज्ञात है कि उन्होंने काफ़ी समय मुस्लिम फकीरों संग व्यतित किया लेकिन माना जाता है कि उन्होंने किसी के साथ कोई भी व्यवहार धर्म के आधार पर नहीं किया। उनके एक शिष्य दास गनु द्वारा पथरी गांव पर तत्कालीन काल पर शोध किया जिसके चार पृष्ठों में साईं के बाल्यकाल का पुनःनिर्मित किया है जिसे श्री साईं गुरुचरित्र भी कहा जाता है। दास गनु के अनुसार उनका बाल्यकाल पथरी ग्राम में एक फकीर और उनकी पत्नी के साथ गुजरा। लगभग सोलह वर्ष की आयु में वो अहमदनगर, महाराष्ट्र के शिरडी ग्राम में पहुंचे और मृत्यु पर्यंत वहीं रहे।
शिरडी गाँव की वृद्धा जो नाना चोपदार की माँ थी उसके अनुसार एक युवा जो अत्यन्त सुन्दर नीम वृक्ष के नीचे समाधि में लीन दिखाई पड़ा| अति अल्प आयु में बालक को कठोर तपस्या में देख कर लोग आश्चर्य चकित
थे| तपस्या में लीन बालक को सर्दी-गर्मी व वर्षा की जरा भी चिंता न थी| आत्मसंयमी बालक के दर्शन करने के लिए अपार जन समूह उमड़ने लगा|
यह अदभुत बालक दिन में किसी का साथ नहीं करता था| उसे रात्रि के सुनसान वातावरण में कोई भय नहीं सताता था| "यह बालक कहाँ से आया था?" यह प्रश्न सबको व्याकुल कर देता था| दिखने में वह बालक बहुत सुन्दर
था| जो उसे एक बार देख लेता उसे बार बार देखने की इच्छा होती| वे इस बात से हैरान थे कि यह सुन्दर रूपवान बालक दिन रात खुले आकाश के नीचे कैसे रहता है| वह प्रेम और वैराग्य की साक्षात् मूर्ति दिखाई
पड़ते थे|
उन्हें अपने मान अपमान की कभी चिंता नहीं सताती थी| वे साधारण मनुष्यों के साथ मिलकर रहते थे, न्रत्य देखते, गजल व कवाली सुनते हुए अपना सिर हिलाकर उनकी प्रशंसा भी करते| इतना सब कुछ होते हुए भी उनकी
समाधि भंग न होती| जब दुनिया जागती थी तब वह सोते थे, जब दुनिया सोती थी तब वह जागते थे| बाबा ने स्वयं को कभी भगवान नहीं माना| वह प्रत्येक चमत्कार को भगवान का वरदान मानते| सुख - दुःख उनपर कोई प्रभाव
न डालते थे| संतो का कार्य करने का ढंग अलग ही होता है| कहने को साईं बाबा एक जगह निवास करते थे पर उन्हें विश्व एक समस्त व्यवहारों व व्यापारों का पूर्ण ज्ञान था|
जय ऊँ, जय ऊँ, जय जय ऊँ, ऊँ, ऊँ, ऊँ, ऊँ, जय जय ऊँ| जय साईं, जय साईं, जय साईं ऊँ, ऊँ साईं, ऊँ साईं, ऊँ साईं|
यह सौंप दिया सारा जीवन, साईंनाथ तुम्हारे चरणों में| अब जीत तुम्हारे चरणों में, अब हार तुम्हारे चरणों में||
मैं जग में रहूं तो ऐसे रहूं, ज्यों जल में कमल का फूल रहे| मेरे अवगुण दोष समर्पित हों, हे नाथ तुम्हारे चरणो में|| अब सौंप दिया...
मेरा निश्चय है बस एक यही, इक बार तुम्हें मैं पा जाऊं| अर्पित कर दूं दुनियाभर का सब प्यार तुम्हारे चरणों में|| अब सौंप दिया...
जब-जब मानव का जन्म मिले, तब-तब चरणों का पुजारी बनूं| इस सेवक की एक-एक रग का हो तार तुम्हारे हाथ में|| अब सौंप दिया...
मुझमें तुमसें भेद यही, मैं नर हूं, तुम नारायण हो| मैं हूँ संसार के हाथों में, संसार तुम्हारे चरणों में|| अब सौंप दिया...
आरती श्री साईं गुरुवर की | परमानन्द सदा सुरवर की ||
जा की कृपा विपुल सुखकारी | दुःख, शोक, संकट, भयहारी ||
शिरडी में अवतार रचाया | चमत्कार से तत्व दिखाया ||
कितने भक्त चरण पर आये | वे सुख शान्ति चिरंतन पाये ||
भाव धरै जो मन में जैसा | पावत अनुभव वो ही वैसा ||
गुरु की उदी लगावे तन को | समाधान लाभत उस मन को ||
साईं नाम सदा जो गावे | सो फल जग में शाश्वत पावे ||
गुरुवासर करि पूजा - सेवा | उस पर कृपा करत गुरुदेवा ||
राम, कृष्ण, हनुमान रूप में | दे दर्शन, जानत जो मन में ||
विविध धर्म के सेवक आते | दर्शन कर इच्छित फल पाते ||
जै बोलो साईं बाबा की | जो बोलो अवधूत गुरु की ||
'साईंदास' आरती को गावे | घर में बसि सुख, मंगल पावे ||
साईं कृपा से व्रत कथा लिखवाई, भक्तों के हाथों में पहुंची| साईं गुरुवार व्रत करे जो कोई, उसका कल्याण तो हरदम होई|
घर बार सुख शांति होवे, साईं ध्यान करे जो सोवे| भोग लगावे निसदिन बाबा को जोई उसके घर में कमी न होई|
बाबा की प्रार्थना करिए, साईं मेरे दुःख को हरिए| शिरडी में बाबा की मूर्ति है प्यारी, भक्तों को लगे है न्यारी|
मेरे साईं मेरे बाबा, मेरा मन्दिर मेरा काबा| राम भी तुम शाम भी तुम हो, शिवजी का अवतार भी तुम हो|
हनुमान तुम ही हो साईं, तुम्ही ने थी लंका जलाई| कलियुग में तुम आए थे साईं, भक्तों का कल्याण हो जाई|
भक्तिभाव से पड़े कथा जो, उसकी इच्छा पूरी हो जाती| बाबा मेरे आओ साईं हमको दर्शन दिखलाओ साईं|
तुम बिन दिल नहीं लगता, आंसू का दरिया है निकलता| जब-जब देखें तेरी मूरत, तब-तब भीग जाए मेरी मूरत|
अंधन को आंखे देते, दीन दुखी के दुख हर लेते| तुम सा नहीं है कोई सहाई, जपते रहें हम साईं साईं|
नाम तुम्हारा मंगलकारी, भवसागर से भक्तों को तारी| बाबा मेरे अवगुण माफ कर देना, भक्ति मेरी को ही लेना|
बाबा हम पर दया करना, अपने चरणों में ही रखना| चरणों में तुम्हारे शीतल छाया, बचे रहेंगे नहीं पड़ेगी मंद छाया|
हमारी बुद्धि निर्मल करना, जग की भलाई हमसे करना| हमको साधन बना लो बाबा, दया कृपा क्षमा दो बाबा|
अज्ञानी हम बालक मंदबुद्धि, तेरी दया से हो मन की शुद्धि| पाप ना कोई हमसे होने पाए, दुःख कोई जीव ना पाए| हरपल भला हम करते आए, गुणगान हरपल तेरे गांए|
||दोहा||
साईं हम पर कृपा करो, बालक हैं अनजान| मंदबुद्धि हम जीव हैं, हमको लो आन संभाल||१||
व्रत आपका कर रहे, दो आशीष यह आन| विध्न पड़े न इसमें कोई, कृपा करो दीनदयाल||२||
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